हिंदी सिनेमा में क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों की भी दिलचस्प कहानी है। जिस देश में आईपीएल के दौरान न फिल्में चलती हैं और न किसी दूसरे काम में ही युवाओं का मन लगता है, उस देश में क्रिकेट वर्ल्ड की पहली जीत पर बनी ‘83’ जैसी बढ़िया फिल्म को भी लोग नहीं देखते हैं। ऐसे में फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ को लेकर दर्शकों में आशंकाएं हों ये तो लाजिमी है लेकिन फोन यहां इतनी जल्दी भी नहीं रखना है, भले दूसरी लाइन पर आजमी है। जी हां, फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ की पृष्ठभूमि भले क्रिकेट की हो लेकिन ये कहानी प्रेम की है। त्याग की है। घमंड और अहंकार की है। और है, पीढ़ियों के बीच बने फासले को क्रिकेट की 22 गज की पिच को नापकर पूरी करने की। सनातन संस्कृति में त्याग को प्रेम का पहला आधार माना गया है। इसका फार्मूला है, ‘तत् सुखे सुखे त्वम्’ और इसी सूत्र के सहारे आगे बढ़ती है फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’। फिल्म के प्रचार में थोड़ा जतन और थोड़ी लगन लगाई गई होती तो टिकट खिड़की पर इसकी ओपनिंग भी शानदार हो सकती थी, लेकिन फिल्म के दोनों प्रमुख कलाकारों राजकुमार राव और जान्हवी कपूर का पिछला बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट कार्ड इस फिल्म पर भारी है। कहानी साधारण सी है, लेकिन इसकी मेकिंग दिलचस्प है। मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का महेंद्र अग्रवाल अपने अरमान क्रिकेट की किट में छुपाकर अपने पिता की दुकान संभालने लगता है। जयपुर जैसे शहर में दुकान बढ़िया चल रही है तो रिश्ता एक ऐसी लड़की का आता है जो एमबीबीएस पास कर डॉक्टरी कर रही है। नाम, महिमा अग्रवाल। महेंद्र और महिमा दोनों को घरवाले माही कहकर ही बुलाते हैं। महिमा का क्रिकेट में हाथ अच्छा चलता है। महेंद्र को ये पता चलता है तो वह उसे डॉक्टरी छोड़ मैदान में उतरने को उकसाता है और जिस मंजिल तक वह खुद नहीं पहुंच पाया, उसकी तरफ अपनी पत्नी को ले जाता है। फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ की कहानी फिल्म शुरू होने से पहले ही दर्शक को पता होती है। फिल्म के टीजर, ट्रेलर और पोस्टर सब इसकी चुगली पहले दिन से करते रहते हैं और कहानी कहने के शिल्प के अनुसार भी ये बात दर्शकों को बताना फिल्म के लेखकों व निर्देशक के लिए जरूरी हो जाता है। अब देखना ये होता है कि मुख्य कलाकारों के सामने आ खड़ी हुई मुसीबत से दोनों पार कैसे पाएंगे और इस सफर के पड़ाव क्या क्या होंगे? तो शरण शर्मा और निखिल मल्होत्रा इसमें पिता-पुत्र का वैचारिक संघर्ष, बुढ़ापे की ओर जा रही पीढ़ी की हवाबाजी की आदतें, मां का हलवा वाला प्यार, बेटी का मन मारकर घर वालों का कहना मानना जैसी पारंपरिक फिल्मी कहानियां इसमें पकाते रहते हैं। एक तरह से देखा जाए तो फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ की नायक जान्हवी कपूर हैं। उनके किरदार की ही चारों तरफ पूरा ताना बाना कसा गया है। राजकुमार राव यहां उनके साथी कलाकार हैं। सहमी सी, सकुचाई सी बेटी का अपने सपने को पूरा करने के लिए अपने दबंग पिता के सामने अपने मन की बात कहना फिल्म का टर्निंग प्वाइंट है। उधर, खेल के सामान की दुकान संभालने वाले पिता भी जब तक अपने बेटे के दिल की बात समझ पाता है, तब तक बेटे को जीवन का असली ‘वैराग्य’ समझ आ चुका है। बतौर निर्देशक शरण शर्मा की ये फिल्म दो पल की शोहरत के लिए रिश्तों को आग लगा देने की युवा पीढ़ी की आदतों पर सीधी चोट करती है और ये अंतर्धारा अगर फिल्म देखने वाले समझ गए तो इस फिल्म का मकसद भी पूरा हो जाता है। ऐ दिल है मुश्किल’ और ‘ये जवानी है दीवानी’ जैसी फिल्मों के निर्माण के दौरान सिनेमा के गुर सीखने वाले शरण शर्मा ने अपनी काबिलियत बतौर निर्देशक अपनी पहली ही फिल्म ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’ में दिखा दी थी। फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ उनकी महिला प्रधान फिल्मों के प्रति आकर्षण की अगली कड़ी है। जान्हवी के साथ उनकी बढ़िया जमती है। पिछली फिल्म में उन्होंने पंकज त्रिपाठी को बतौर पिता जान्हवी का सपोर्ट सिस्टम बनाया था, इस बार पति के रूप में राजकुमार राव यही काम कर रहे हैं। दोनों फिल्मों का टेम्पलेट एक जैसा ही है। शरण शर्मा को बतौर निर्देशक अपना नाम बनाने के लिए अपने चारों तरफ बनता जा रहा ये खाका तोड़ना अब जरूरी होगा।

अभिनय के मामले में जान्हवी कपूर ने फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ में फिर एक बार ये साबित किया है कि कहानी अच्छी हो, पटकथा चुस्त हो और उनके किरदार के सामने चुनौती पारिवारिक हो तो वह अपनी मां श्रीदेवी की तरह दर्शकों को रुला देने की ताकत रखती हैं। स्टार किड्स की मौजूदा पीढ़ी की वह सबसे दमदार अदाकारा हैं। लेकिन, उनका सोशल मीडिया उनको अपनी ये छवि गाढ़ी नहीं करने देता। जान्हवी की बढ़िया अदाकारी को देखने के लिए उनके प्रशंसकों का सिनेमाघरों तक आना जरूरी है और जब तक जान्हवी अपनी नुमाइश सोशल मीडिया पर बिना टिकट जारी रखेंगी, टिकट लेकर उन्हें देखने आने वालों की तादाद बढ़ पाना काफी मुश्किल है। राजकुमार राव के लिए फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ में करने को कुछ खास नहीं है। वह एक हारे हुए किरदार में हैं और इस किरदार का पूरा जोर अब कहानी की नायिका को उसके उत्कर्ष तक पहुंचाने वाली क्रियाओं में बस एक उत्प्रेरक की भूमिका अदा करना है। उनकी पिछली फिल्म ‘श्रीकांत’ अब भी सिनेमाघरों में चल रही है। अभिनय के मामले में उनका विकास अब तक अच्छा हुआ है। अब, आगे बढ़कर क्या वह अपनी छवि तोड़ने के लिए या फिर दर्शकों को चौंकाने के लिए कुछ ऐसा कर पाएंगे, जो उन्होंने भी बतौर अभिनेता न सोचा हो, इसी सवाल में उनका आने वाला कल छिपा है। कुमुद मिश्रा ने एक सख्त पिता के रूप में अपना असर छोड़ा है। कोच शुक्ला बने राजेश शर्मा भी फिल्म को अच्छा सहारा देते हैं। पूर्णेंदु भट्टाचार्य और जरीना वहाब कमाल के कलाकार रहे हैं, लेकिन उनकी काबिलियत के हिसाब से उनके किरदार यहां कम अवधि के हैं। फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ की पृष्ठभूमि जयपुर की है और अनय गोस्वामी ने गुलाबी शहर की अलसाती सुबहें और जगमगाती रातें आउटडोर शूटिंग में अच्छी पकड़ी हैं। फिल्म की इनडोर शूटिंग में भी दृश्यों के भूगोल के हिसाब से उनके कैमरे का संयोजन अच्छा है। नितिन बैद का संपादन चुस्त है। लेकिन, यही बात फिल्म के गीत-संगीत को लेकर नहीं कही जा सकती। फिल्म की पूरी भावना को समझा पाने वाला एक भी गाना फिल्म में नहीं है। राजस्थान में चलती कहानी का पहला ही गाना पंजाबी में होने, सुबह का नाश्ता कर रही मां के सादी ब्रेड खाते समय टोस्ट खाने जैसी आवाज आना, फिल्म में रह गई छोटी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण कमियों को गिनाने के सटीक उदाहरण हैं। उल्लेखनीय यहां ये है कि मल्टीप्लेक्स सिनेमाघर शुक्रवार को सिनेमा लवर्स डे मना रहे हैं और 99 रुपये की टिकट के हिसाब से देखें तो ये फिल्म पैसा वसूल है।

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